कोविड-19 की अप्रत्याशित महामारी ने लगभग पैंडोरा बॉक्स (दुःखों और तकलीफों से भरा बक्सा) खोल दिया है। अन्य चुनौतियों के अलावा, यह वर्तमान स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था का परीक्षण भी कर रहा है। कोविड-19 से संक्रमित उन लोगों में, बहुत ही कम में गुर्दों से संबंधित आसामान्यताएं विकसित हो रही हैं, जिन्हें पहले गुर्दों से संबंधित कोई समस्या नहीं थी। कुछ मरीजों में एक्यूट किडनी इंजुरी (एकेआई) भी विकसित हो रही है, जो मरीज के जीवित रहने की संभावनाओं को प्रभावित करने वाली स्थिति है।
इसके अलावा, इंटरनेशनल सोसायटी ऑफ नेफ्रोलॉजी (आईएसएन) की एक हालिया रिपोर्ट में खुलासा किया गया है कि कोविड-19 से संक्रमित 25-50 प्रतिशत लोगों में गुर्दों से संबंधित आसामान्यताओं के मामले देखे गए हैं। जो मूत्र में प्रोटीन और रक्त के पर्याप्त रिसाव के रूप में प्रकट हुए, जिसके परिणामस्वरूप लगभग 15 प्रतिशत मरीजों में एकेआई विकसित हो गया, जो इस ओर इशारा करता है कि कोविड-19 गुर्दों पर भी आक्रमण करता है।[1]
गुरूग्राम स्थित मेदांता अस्पताल के इंटेन्सिविस्ट, डॉ. दीपक गोविल ने बताया, “सामान्यतौर पर यह माना जाता है कि कोविड-19 प्रकार के वायरस श्वसन तंत्र से उत्पन्न होते हैं और फेफड़ों को सबसे अधिक प्रभावित करते हैं, लेकिन इस बात के भी पर्याप्त प्रमाण हैं कि कोविड-19 गुर्दों पर भी आक्रमण करता है या तो प्रत्यक्ष रूप से या गंभीर प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया में मध्यस्था के रूप में, जो कोविड-19 के गंभीर मरीजों में देखा जाता है। सार्स और मर्स-कोव संक्रमणों की पूर्व रिपोर्टों के अनुसार, इनके 5-15 प्रतिशत मामलों में एक्यूट किडनी इंजुरी (एकेआई) विकसित हुई थी, लेकिन उन मामलों में से लगभग 60-90 प्रतिशत मामलों में मृत्यु दर दर्ज की गई। जबकि कोविड-19 की प्रारंभिक रिपोर्टों के अनुसार, एकेआई के मामले काफी कम (3-9 प्रतिशत) थे, बाद की रिपोर्टें इस ओर इशारा करती हैं कि गुर्दों से संबंधित आसामान्यताओं के मामले तेजी से बढ़े हैं। कोविड-19 के 59 रोगियों के अध्ययन में पाया गया कि लगभग दो-तिहाई मरीजों में अस्पताल में रहने के दौरान मूत्र में प्रोटीन का भारी रिसाव हुआ।”
कोविड-19 के मरीजों में जिनमें एकेआई के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, उन्हें जो उपचार दिया जा रहा है उसमें सम्मिलित है सामान्य और सहायक प्रबंधन और किडनी रिप्लेसमेंट थेरेपी। प्रभावी एंटीवायरल थेरेपी की अनुपस्थिति में, कुछ मामलों में तीव्र या तत्काल डायलिसिस, लगातार रीनल रिप्लेसमेंट थेरेपी (सीआरआऱटी) की आवश्यकता पड़ती है। यह शब्दावली तीव्र डायलिसिस तकनीकों के संग्रह के लिए इस्तेमाल की जाती है, जो इन मरीजों को विशेषरूप से गंभीर रूप से बीमार मरीजों को जो एकेआई से पीड़ित हैं या जिनकी प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया अत्यधिक तीव्र है को दिन के चौबीसों घंटे सपोर्ट कर सकती है।
दिल्ली स्थित, मैक्स हेल्थकेयर के नेफ्रोलॉजिस्ट, डॉ. सतीश छाबड़ा कहते हैं, “पिछले अध्ययनों [2, 3, 4] से पता चलता है कि सीआरआरटी को पहले से ज्ञात कोरोनावायरस से संबंधित सार्स और मर्स बीमारियों के उपचार में सफलतापूर्वक लागू किया गया था, जो श्वसनतंत्र से संबंधित बीमारियों के रूप में ही प्रकट हुई थी। यह अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में, प्रतिरक्षा विषाक्त पदार्थों को साफ करने में सहायता कर सकता है, इस प्रकार से सीआरआरटी उन मरीजों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जिन्हें कोविड-19 के साथ एकेआई है या जिनका प्रतिरक्षा विष भार अधिक है।”
वह आगे कहते हैं, “उन स्थितियों में जहां द्रव संतुलन में बदलाव और चयापचय में उतार-चढ़ाव को सहन करने में समस्या होती है और उन स्थितियों में जहां अन्य आसाधारण उपचार की आवश्यकता होती है, सीआरआरटी को एक एकीकृत प्रणाली के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है और समानांतर प्रणालियों पर प्राथमिकता दी जाती है, जैसा कि हाल ही में पूर्वव्यापी कोहार्ट अध्ययन में प्रकाशित किया गया था।[5] अध्ययन में, यह पाया गया कि कोविड-19 के छत्तीस मरीजों को इनवेसिव मैकेनिकल वेंटिलेशन की आवश्यकता पड़ी, जहां सीआरआरटी मृत्युदर कम करने से संबंधित है, उनकी तुलना में जिनका उपचार बिना सीआरआरटी के किया गया था। हालांकि, उपचार करने वाले फिजिशियन द्वारा एक्स्ट्रास्पोरियल थेरेपी तकनीकों की संभावित भूमिका का मूल्यांकन किया जाने की आवश्यकता है।”
विशेषज्ञ इस बात पर एकमत हैं कि तीव्र डायलिसिस तकनीकें जैसे कि सीआरआरटी, कोविड-19 और सेप्सिस सिंड्रोम वाले रोगियों के उपचार में भी प्रभावी हो सकती हैं, भले ही उनके गुर्दों की कार्यप्रणाली कैसी भी हो। कोविड-19 के बढ़ते मरीजों और इसके कारण किडनी की कार्यप्रणाली के प्रभावित होने के बढ़ते मामलों के देखते हुए इस प्रकार की एक्स्ट्रा-कार्पोरियल थेरेपीज़ गंभीर रूप से बीमार मरीजों के उपचार में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। विशेषज्ञों द्वारा सही समय पर सही उपचार के द्वारा उन संक्रमित लोगों की जान बचाई जा सकती है जो जीवन और मृत्यु के बीच जूझ रहे हैं।